केंद्रीय मंत्री अरूण जेटली ने चरमपंथ प्रभावित क्षेत्रों से बाहर के इलाकों में माओवादी गतिविधियों के विस्तार को खतरनाक प्रवृति बताया और केंद्र में सत्तारूढ़ राजग सरकार के खिलाफ इनका इस्तेमाल करने को लेकर कुछ राजनीतिक दलों की आलोचना की. गुर्दा प्रतिरोपण के बाद स्वास्थ्य लाभ कर रहे जेटली ने अपने ब्लॉग में कहा, ‘दुर्भाग्य से कुछ राजनीतिक दल राजग विरोध को एक हथियार के रूप में देखते हैं. आतंकवाद और चरमपंथ के इतिहास से जुड़ा एक बुनियादी तथ्य हमें बताता है कि कभी भी बाघ की सवारी नहीं करो, आप पहला शिकार हो सकते हैं.’

जेटली ने कहा कि पिछले कुछ दिनों में चरमपंथ प्रभावित क्षेत्रों से बाहर के इलाकों में माओवादी गतिविधियों का विस्तार देखा गया है. यह एक खतरनाक प्रवृति है और सभी राजनीतिक दलों को इसे समझना चाहिए. उन्होंने कहा कि माओवादी हिंसा के माध्यम से केवल सरकार ही नहीं बल्कि संवैधानिक प्रणाली को उखाड़ फेंकने में विश्वास करते हैं. उन्होंने कहा कि उनकी (माओवादियों) मान्यता में कोई बुनियादी अधिकार नहीं है, कानून का कोई शासन नहीं है, कोई संसद नहीं है और अभिव्यक्ति की कोई स्वतंत्रता नहीं है.

जेटली ने कहा कि लेकिन उनसे (माओवादियों) सहानुभूति रखने वाले अपना राजनीति आधार बढ़ाने के लिये लोकतांत्रिक कारकों का पूरा उपयोग करते हैं. उल्लेखनीय है कि जेटली की टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब माओवादियों के साथ कथित ‘संबंधों’ के आरोप में गिरफ्तार एक व्यक्ति के घर से मिले एक पत्र में कहा गया है कि माओवादी ‘राजीव गांधी हत्याकांड जैसी घटना’ (को अंजाम देने) पर विचार कर रहे हैं. इसमें बताया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके रोड शो के दौरान निशाना बनाया जाए.

पुलिस के अनुसार यह पत्र ‘आर’ नामक व्यक्ति ने किसी कॉमरेड प्रकाश को पत्र भेजा है. इसमें एम-4 राइफल खरीदने के लिए आठ करोड़ रुपये और घटना को अंजाम देने के लिए चार लाख राउंड गोला-बारूद की जरूरत पड़ने की बात की गयी है. बहरहाल, जेटली ने अपने ब्लॉग में लिखा कि संप्रग 2 के दौरान विपक्ष में रहते हुए राज्यसभा में उन्होंने विश्लेषण किया कि भारत में माओवादी चार तरह के हैं. पहले वे जो विचारधारा से जुड़े हैं. दूसरे जो हथिरयाबंद है और अभियान चलाते हैं.



केंद्रीय मंत्री ने कहा कि तीसरे श्रेणी में मासूम आदिवासी और अन्य लोग आते हैं जो अन्याय का सामना कर रहे होते हैं और जिन्हें यह कहकर भ्रमित किया जाता है कि माओवादी उन्हें राहत देंगे. ‘हमें इस वर्ग पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है.’

उन्होंने कहा कि चौथी श्रेणी उनकी है जिन्हें वे ‘आधा माओवादी’ कहते हैं. जाने या अनजाने वे भूमिगत लोगों के बाहरी चेहरे हैं. ये लोग लोकतांत्रिक प्रणाली का हिस्सा होते हैं, लोकतंत्र की भाषा बोलते हैं लेकिन माओवादियों को समर्थन प्रदान करते हैं. ऐसे लोग देश के कई हिस्सों में मानवाधिकार आंदोलन पर काबिज हो चुके हैं.
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