नई दिल्ली I अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) में लगी मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को लेकर जारी सियासी घमासान के बीच उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक राज्यमंत्री मोहसिन रजा ने कहा कि शिक्षण संस्थान में जिन्ना की तस्वीर लगाने की इजाजत कतई नहीं दी जाएगी.
उन्होंने यह बात आजतक की ओर से आयोजित पंचायत 'जिन्ना एक विलेन पर जंग क्यों' के पांचवें सत्र 'हिंदुस्तान में किसको चाहिए जिन्ना' पर बहस के दौरान कही. इस सत्र का संचालन मशहूर एंकर अंजना ओम कश्यप ने किया.

मोहसिन रजा ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) एक शिक्षण संस्थान है. अगर वहां पर बच्चों को यह सच्चाई नहीं बताई जाएगी कि जिसको वो आदर्श मानकर बैठे हैं और जिसको लेकर उनको गुमराह किया जा रहा है वो आजादी में विलेन रहा है, तो इससे देश का नुकसान होगा. ये बच्चे देश का भविष्य हैं.
उन्होंने सवाल किया कि हम भारत के महापुरुषों की तस्वीर क्यों नहीं लगाते? बच्चों को गुमराह किया जा रहा है. एएमयू के लोग दूसरों के हाथ की कठपुतली बन गए हैं. मोहसिन रजा ने सख्त लहजे में कहा कि जो आजादी में विलेन रहा है, उसकी तस्वीर को शिक्षण संस्थान में रखने की इजाजत हम कतई नहीं देंगे.
वहीं, जेडीयू के नेता केसी त्यागी ने कहा कि आजादी के आंदोलन के सबसे बड़ा नेता महात्मा गांधी हैं. जिन्ना को किसी भी तरीके से महिमामंडित करने का प्रयास अच्छा नहीं है. महात्मा गांधी ने कहा था पाकिस्तान मेरी डेड बॉडी पर बनेगा, लेकिन कांग्रेस की थकी हुई लीडरशिप के आगे वो भी बेबस हो गए थे. गांधी को भी विभाजन स्वीकार करना पड़ा.

त्यागी ने कहा, ''क्या 80 साल के बाद लोगों को पता चला कि यहां जिन्ना की तस्वीर लगी है? मैं तो चाहता हूं कि जिन्ना की तस्वीर हटाकर गांधी की तस्वीर लगा देनी चाहिए.''
इसके अलावा आरएसएस के विचारकर राकेश सिन्हा ने कहा कि देश में जब-जब आजादी के लिए आंदोलन हुए, तब-तब जिन्ना देश से बाहर था. लंदन से भारत तब आया जब उसने मुस्लिम लीग से कहा कि उसे अध्यक्ष बनाया जाए. जिन्ना नादिर शाह था.

उन्होंने कहा कि ट्रिब्यून अखबार ने 23 अगस्त 1946 में अपने संपादकीय में लिखा था कि 16 अगस्त 1946 को कलकत्ता की सड़कों को जिन्ना ने बूचड़खाने में तब्दील कर दिया. उस समय 15 हजार लोग मारे गए थे. जिन्ना की तुलना हिटलर से की जा सकती है, नादिर शाह, गौरी-गजनी से की जा सकती है.
इसके अलावा राजनीतिक विश्लेषक सुधींद्र कुलकर्णी ने कहा कि आज हम हिंदू-मुस्लिम लड़ रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि देश के विभाजन के लिए जिन्ना से ज्यादा अंग्रेज दोषी हैं. उन्होंने कहा कि हमारी सभी की राय इस बात पर एक है कि भारत का विभाजन नहीं होना चाहिए था और खून-खराबा नहीं होना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ.

उन्होंने कहा कि देश के विभाजन के लिए जिन्ना से ज्यादा अंग्रेज दोषी हैं. अंग्रेजों ने फूट डालो और शासन करो की नीति अपनाई थी. उन्होंने कहा कि आजादी तो जून 1948 में मिलने वाली थी, लेकिन वायसराय माउंटबेटन ने इसको अगस्त 1987 तक ही खींचा, जिसके कारण डर का माहौल पैदा हुआ.
इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि जब साल 1979 में माउंटबेटन की मौत हुई, तो भारत सरकार ने सात दिन का शोक घोषित किया था और राष्ट्र ध्वज आधा झुकाया था. जबकि हकीकत यह है कि जिन्ना से ज्यादा ये अंग्रेज दोषी हैं, लेकिन आज हम हिंदू-मुसलमान में लड़ रहे हैं.

लेखक सुधींद्र कुलकर्णी ने कहा कि साल 2005 में लालकृष्ण आडवाणी के साथ मैं भी पाकिस्तान गया था. तब जिन्ना की मजार पर आडवाणी ने कहा कि साल 1930 तक हिंदू-मुसलिम एकता के जिन्ना हिमायती थे. दूसरी बात आडवाणी ने यह कही कि 11 अगस्त 1947 को जिन्ना ने पाकिस्तान की संविधान समिति में अपने भाषण में कहा कि पाकिस्तान मजहबी मुल्क नहीं होगा. इस्लामी मुल्क नहीं होगा. यहां हिन्दू-मुसलमान सब मिलकर बराबर रहेंगे.
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