सर सय्यद अहमद खान ने इसे साल 1875 में स्थापित किया था. मूल रूप से यह एक मदरसा था जिसका नाम था मदरसातुल उलूम मुसलमानन-ए-हिंद. हिंदुस्तानी मुसलामानों को हर स्तर पर बाकियों के समकक्ष लाने के लिए इसे स्थापित किया गया था.


11वीं से लेकर इंजीनियरिंग तक की पढ़ाई विकास ने एएमयू से की. 7 साल एएमयू में बिताने वाले विकास मानते हैं कि कॉलेज और हॉस्टल में कभी किसी ने अलग महसूस नहीं करवाया. विकास दुबई में नौकरी करते हैं और कहते हैं कि एएमयू में बिताया गया उनका समय उनकी जिंदगी का सबसे बेहतरीन समय था.

अपनी जिंदगी के 14 साल एएमयू में बिताने वाले वसीम हाल में हुई घटनाओं से बहुत व्याकुल हैं. वो कहते हैं कि उनके बहुत से दोस्त हिंदू हैं, क्रिस्चियन हैं और अलग-अलग मान्यताओं को मानने वाले हैं. लेकिन एएमयू में पढ़ाई के दौरान ना तो यहां कभी धर्म को लेकर कोई झगड़े हुए ना ही कभी ऐसी कोई घटनाएं हुईं जहां खुद को एक-दूसरे से अलग करके देखा गया हो. हर कॉलेज की ही तरह एएमयू में पढ़ने वाले बच्चे भी वहां पढ़ने और जिंदगी में कुछ हासिल करने जाते हैं. ऐसे में दोस्त बनाए हुए आप कभी किसी से क्या उसका मजहब पूछेंगे?

समर लखनऊ में रहती हैं और एएमयू की हवा को अपने खून का हिस्सा मानती हैं. उनके नाना से लेकर उनके परिवार के लगभग हर शख्स से कभी ना कभी एएमयू में पढ़ाई की है. उन्होंने भी दो साल एएमयू में गुजारे हैं लेकिन कभी भी उनका किसी भी धर्म या देशविरोधी घटना से सारोकार नहीं हुआ. हाल ही में एएमयू के छात्रों पर हुए लाठीचार्ज में उनके कजिन पर भी लाठियां बरसी हैं. इससे उनका पूरा परिवार बहुत विचलित है.




अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक बार फिर से चर्चा में है. इस बार वजह है मोहम्मद अली जिन्ना की एक तस्वीर. यह विवाद इतना बढ़ गया है कि यूनिवर्सिटी के छात्रों पर लाठीचार्ज होने की खबरें भी सामने आई हैं. जिस तेजी से यह आग फैल रही है, डर है कि कहीं यह कम्युनल जामा ना पहन ले. लेकिन एएमयू में पढ़ रहे और वहां पढ़ चुके छात्रों का मानना है कि 'ये मेरा चमन है मेरा चमन, मैं इस चमन का बुलबुल हूं' के तरानों से गूंजने वाली एएमयू की सरजमीं पर कभी कोई हिंदू-मुसलमान नहीं हुआ.
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