2014 के आम चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने वाली भारतीय जनता पार्टी राज्यों में भी चुनाव-दर चुनाव अपनी जीत का परचम लहराती आ रही है. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 22 राज्यों में चुनाव हुए, जिनमें से फिलहाल 20 राज्यों में बीजेपी और उसकी गठबंधन सरकार हैं.

बीजेपी कांग्रेस मुक्त भारत के अपने मिशन की तरफ बढ़ रही है, लेकिन हाल के कुछ उपचुनाव में बीजेपी की हार और कर्नाटक में गठबंधन सरकार बनने के बाद बीजेपी विरोधी दलों में भी एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है. इसका नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस विपक्षी एकजुटता के सहारे आगे भी अपनी चुनावी वैतरणियां पार लगाने की योजना में लगी हुई है.

कांग्रेस के चुनावी शतरंज में फिलहाल बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती सबसे अहम मोहरा नजर आ रही हैं. इसकी वजह 2019 का लोकसभा चुनाव तो है ही, उससे पहले राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कुछ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव भी हैं. शायद यही वजह रही कि बेंगलुरु में जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी के शपथग्रहण समारोह में जब विपक्षी दलों के नेता जुटे तो यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने मायावती को बेहद शिद्दत के साथ गले लगाया.

कर्नाटक की उस तस्वीर के बाद अब खबर ये भी आने लगी है कि कांग्रेस बसपा के साथ मिलकर इन तीनों राज्यों (राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़) में चुनाव लड़ सकती है. दरअसल, कांग्रेस की इस रणनीति के पीछे इन राज्यों में बसपा की निर्णायक मौजूदगी है, जिसमें कांग्रेस को आशा की किरण नजर आ रही है. फिलहाल तीनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकार है.

मध्यप्रदेश

मध्यप्रदेश के 2013 विधानसभा चुनाव के आंकड़ों को देखा जाए तो कुल 230 सीटों में से बीजेपी को 165 सीटें मिली थीं और उसका वोट प्रतिशत 44.88 था. वहीं, कांग्रेस को 36.38% वोट शेयर के साथ 58 सीटों पर जीत मिली थी. बसपा को हालांकि महज 4 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन उसका वोट प्रतिशत 6.43% रहा था.

इतना ही नहीं बीएसपी 11 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी. इन सभी सीटों पर बीएसपी उम्मीदवारों ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी. ऐसे में कांग्रेस और बसपा का गठजोड़ होने की स्थिति में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है.

राजस्थान

राजस्थान विधानसभा की कुल 200 सीटों में बीजेपी के पास 163 सीटें हैं. 2013 में हुए चुनाव में बीजेपी ने 45.2% वोट हासिल किया था. जबकि कांग्रेस 33.1% के साथ 21 सीट और 3.4% वोट के साथ बसपा 3 सीटें जीत पाई थी. तीन सीटों पर बीएसपी रनर-अप रही और उसने बीजेपी को टक्कर दी.  

दिलचस्प बात ये है कि दलितों की पार्टी कही जाने वाली बसपा को तीनों जीत सामान्य सीटों पर ही मिली थीं. जबकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 34 सीटों में से 33 पर बीजेपी ने परचम लहराया था और एक सीट पर अन्य को जीत मिली थी. बावजूद इसके कांग्रेस और बीएसपी के वोट मिलकर बीजेपी को कड़ी चुनौती दे सकते हैं.

छत्तीसगढ़

2013 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कुल 90 में से 49 सीटों पर जीत मिली थी और पार्टी ने अपने दम पर सरकार बनाई थी. बीजेपी को 41% वोट मिला था, जबकि कांग्रेस को 40.3% वोट के साथ महज 39 सीट मिल पाई थीं. बसपा को 4.3% के साथ 1 सीट मिली थी. ऐसे में अगर कांग्रेस-बसपा साथ मिलकर चुनाव लड़ते तो बीजेपी के लिए सरकार बनाना शायद मुश्किल होता. यही वजह है कि कांग्रेस को मायावती का साथ जरूरी नजर आ रहा है.

वैसे कांग्रेस इन राज्यों के बहाने यूपी पर निशाना भी लगा रही है. दरअसल, यूपी में कांग्रेस की स्थिति बेहद खराब है. जबकि राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है. ऐसे में 2019 के आम चुनाव में विपक्षी एकजुटता का फॉर्मूला जब तैयार होगा तो कांग्रेस यूपी में ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल कर चुनाव लड़ने की कोशिश करेगी. दूसरी तरफ मायावती सम्मानजनक सीटें मिलने पर ही गठबंधन के लिए राजी होने का ऐलान कर चुकी हैं.

माना जा रहा है कि कांग्रेस अगर एमपी, छ्त्तीसगढ़ और राजस्थान में बीएसपी के लिए दिल खोलती है और उसे पर्याप्त सीट देती है तो इसके बदले उसे यूपी में बहनजी से कुछ सीटें मिलने की उम्मीद बंधेगी. यूपी में महागठबंधन होने पर सपा और बसपा के बीच सीटों का बंटवारा होगा तो कांग्रेस के लिए बहुत ज्यादा सीटें नहीं बचेंगी. ऐसे में पार्टी पहले से ही मायावती का दिल जीतने में लगी हुई है. 
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