नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन ने हर साल किसी न किसी कॉलेज में होने वाले फर्जी दाखिलों को लेकर सख्त रुख अपनाया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि खेल, आरक्षित वर्ग और अन्य प्रकार के प्रमाणपत्रों की जांच कॉलेज स्तर पर फोरेंसिक विशेषज्ञ से कराई जाएगी। इसमें कहीं भी गड़बड़ी पाई जाती है तो इसके लिए कॉलेज ही जिम्मेदार होंगे।
डीयू के कुछ कॉलेज फर्जीवाड़े से बचने के लिए पहले से ही फोरेंसिक विशेषज्ञ से जांच कराते हैं। डीयू का यह निर्णय कॉलेज प्रबंधन को रास नहीं आ रहा है। स्नातक में दाखिले के समय प्रमाणपत्रों की जांच को लेकर कॉलेजों के प्रिंसिपल एकमत नहीं हैं। प्रिंसिपलों का कहना है कि इसके लिए आर्थिक समस्या तो होगी ही साथ ही सैकड़ों फोरेंसिक विशेषज्ञ कहां से मिलेंगे। हालांकि एक प्रिंसिपल का कहना है इसे अनिवार्य नहीं बल्कि ऐच्छिक बनाया जाना चाहिए और निर्णय कॉलेजों पर छोड़ देना चाहिए।
साउथ कैंपस के एक कॉलेज के प्रिंसिपल का कहना है कि इस तरह के निर्देश की जानकारी हमें मीडिया से मिली है। इसके लिए पैसा कहां से आएगा विश्वविद्यालय ने इस बारे में नहीं बताया है। यदि छात्रों के प्रमाणपत्रों की जांच फोरेंसिक विशेषज्ञ से कराना अनिवार्य हो गया तो हम स्टूडेंट सोसाइटी का पैसा खर्च करेंगे।
एक अन्य कॉलेज के प्रिंसिपल का कहना है कि डीयू ने फोरेंसिक विशेषज्ञ के लिए कहा तो है लेकिन इतनी संख्या में विशेषज्ञ कहां से आएंगे। सभी 60 कॉलेजों तीन सौ से अधिक फोरेंसिक विशेषज्ञ चाहिए। क्या राजधानी में इतने विशेषज्ञ होंगे। इसलिए यह फैसला कॉलेजों पर छोड़ देना चाहिए।
आरक्षित वर्ग व पूर्वोत्तर के छात्रों के लिए स्पेशल सेल
डीयू में पूर्वोत्तर के छात्रों को दाखिला को लेकर होने वाली परेशानी को ध्यान में रखते हुए नॉर्थ-ईस्ट स्पेशल सेल बनाने की बात कही है। पूर्वोत्तर के छात्रों के लिए विशेष अभियान भी चलाया जाएगा। इस संबंध में पूर्वोत्तर राज्यों में कॉलेजों के प्रिंसिपल को भी पत्र लिखा जाएगा। डीयू की दाखिला समिति ने पहले ही स्पष्ट किया है कि आरक्षित वर्ग में निर्धारित कोटे से कम दाखिला होता है, इसलिए उनके लिए स्पेशल अभियान चलाया जाएगा ताकि सीटें भरी जा सकें।
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