कांग्रेस ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग चलाने के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वाले सदस्यों में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को शामिल नहीं किया है. कांग्रेस का कहना है कि ऐसा रणनीति के तहत किया गया है. यह पहला अवसर है जब देश के प्रधान न्यायाधीश को पद से हटाने के लिये उन पर महाभियोग चलाने के प्रस्ताव का नोटिस दिया गया है.
कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने शुक्रवार उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू को विपक्षी दलों की ओर से महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस सौंपा. इसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने बताया कि डॉक्टर सिंह समेत कुछ प्रमुख नेताओं को जानबूझकर इस प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया है.
प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने को लेकर पार्टी में मतभेद के सवाल पर सिब्बल ने कहा ‘‘इस बारे में पार्टी में विभाजन जैसी कोई बात नहीं है. डॉक्टर सिंह पूर्व प्रधानमंत्री हैं इसलिये हमने जानबूझ कर उन्हें इस प्रक्रिया में शामिल नहीं किया है.’’ सिब्बल ने स्पष्ट किया कि डॉक्टर सिंह के अलावा कुछ ऐसे वरिष्ठ नेताओं ने भी प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं जिनके खिलाफ न्यायालय में मामले लंबित हैं.
संसद के बजट सत्र में विपक्षी दलों की ओर से प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस की कवायद शुरू होने के बाद सभापति को नोटिस सौंपने के लिये अब तक इंतजार करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि 12 जनवरी को उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर सहित चार न्यायाधीशों ने न्यायपालिका में व्यवस्था संबंधी प्रश्न उठाये थे.
सिब्बल ने कहा, ‘‘तब हम इस उम्मीद में चुप रहे कि प्रधान न्यायाधीश अन्य न्यायाधीशों द्वारा उठाये गये मुद्दों पर संज्ञान ले कर कारगर कदम उठायेंगे. तब से अब तक तीन महीने के इंतजार के बाद भी कुछ नहीं हुआ और हम न्यायपालिका की स्वायत्तता पर मंडराते खतरे को देखकर चुप नहीं बैठे रह सकते थे. अब हमें भारी मन से यह कदम उठाना पड़ा.’’
सभापति द्वारा प्रस्ताव के नोटिस को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने की स्थिति में भविष्य की रणनीति पर सिब्बल ने कहा कि नोटिस में प्रधान न्यायाधीश के पर लगाये गये आरोपों की गंभीरता को देखते हुये इसे स्वीकार किये जाने की उम्मीद है. उन्होंने कहा ‘‘अगर सभापति प्रस्ताव के नोटिस को खारिज करते हैं तो संविधान में हमारे लिये इसके विकल्प के रूप में अन्य रास्ते मौजूद हैं. फिलहाल हमें सभापति के रुख का इंतजार है.’’
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