केंद्रीय मंत्री अरूण जेटली ने न्यायिक नियुक्ति की सिफारिश को विचार के लिए कॉलेजियम के लिये वापस भेजे जाने के सरकार के निर्णय पर हाय तौबा मचाने के लिये आज कांग्रेस पार्टी की आलोचना की. जेटली ने याद दिलाया कि किस प्रकार से पहले भी न्यायाधीशों की वरीयता क्रम का उल्लंघन किया गया और फैसलों को प्रभावित करने के प्रयास किये गए. अरूण जेटली का यह बयान ऐसे समय में आया है जब सरकार ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की शीर्ष अदालत में पदोन्नत करने के सुप्रीम कोर्ट  कालेजियम की सिफारिश को वापस लौटा दिया था. हालांकि कालेजियम ने उनका नाम सरकार को फिर से भेजने का निर्णय किया लेकिन अभी तक औपचारिक तौर पर सरकार से सम्पर्क नहीं किया है.

जेटली ने फेसबुक पोस्ट और ब्लाग में लिखा कि समय के साथ अनेक न्यायिक फैसलों में अदालत ने न्यायिक नियुक्ति में कार्यपालिका की भूमिका को कम किया . संविधान ने कार्यपालिका के लिये महत्वपूर्ण भूमिका निर्धारित की है.केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह न्यायिक जवाबदेही का हिस्सा है . पिछला अनुभव बताता है कि अदालत ने न्यायिक नियुक्ति में कार्यपालिका की भूमिका को कम किया . इस स्थिति में कार्यपालिका अपनी बात कालेजियम के समक्ष रख सकती है और उपयुक्त सुझाव के साथ फिर से विचार के लिये उस सिफारिश को लौटा सकती है लेकिन सिफारिश से बंधी हैं . यह संविधान के कथ्य के विपरीत है.

जेटली ने लिखा, ‘‘सरकार के एक मामले को वापस लौटाने को लेकर कांग्रेस पार्टी में मेरे मित्रों ने हाय तौबा मचाना शुरू किया . यह एक निर्वाचित सरकार की काफी कम की गई भूमिका का हिस्सा है कि उपयुक्त बातें कालेजियम के संज्ञान में लाई जाएं .’’ उन्होंने कहा कि यह लोकतांत्रिक जवाबदेही के अपुरूप है. सभी को यह पता होना चाहिए कि यह इतिहास का एक महत्वपूर्ण पाठ है. ‘‘मैंने यह ब्लाग लिखा है ताकि कांग्रेस पार्टी के मेरे मित्रों को आइना देखने का मौका मिल सके .’’ जेटली ने अपने ब्लाग में अतीत के कई ऐसे उदाहरण पेश किये जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की वरीयता क्रम का उल्लंघन किया गया था और किस प्रकार से सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशों को दरकिनार किया गया था .

इंदिरा गांधी के समय का जिक्र करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा , ‘‘प्रधान न्यायाधीश हिदायतुल्ला ने बम्बई हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एस पी कोटवाल , केरल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम एस मेनन के नाम की सिफारिश केरल हाईकोर्ट में पदोन्नत करने के लिये की. कार्यपालिका ने इन दोनों नामों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और सिफारिश को दरकिनार कर दिया . प्रधान न्यायाधीश ने कार्यवाही नहीं किये जाने पर कभी प्रश्न नहीं उठाया. ’’



जेटली ने प्रसिद्ध केशवानंद भारती मामले का जिक्र करते हुए कहा कि किस प्रकार से तब की सरकार ने न्यायिक स्वतंत्रता का हनन करने का प्रयास किया और संसद की मदद से संविधान के बुनियादी स्वरूप से छेड़छाड़ करके सत्ता हासिल किया . उन्होंने कहा कि इस बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला मील का पत्थर था जिसमें यह कहा गया कि संविधान के बुनियादी स्वरूप के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है. नेहरू के काल का जिक्र करते हुए जेटली ने कहा कि न्यायमूर्ति एच जे कानिया ने  हाईकोर्ट में नियुक्ति के लिये नामों की सिफारिश करनी शुरू की , इसके कारण विवाद की स्थिति पैदा हो गई थी . उन्होंने कहा कि पंडित नेहरू ने उनके :कानिया: भारत का प्रथम प्रधान न्यायाधीश होने के उपयुक्त होने पर सवाल खड़ा किया था . तब सरदार पटेल के कौशल से न्यायमूर्ति कानिया से जुड़े विषय में स्थिति संभाली थी .
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