साल 1999 में 13 महीने की वाजपेयी सरकार गिरने के बाद सोनिया गांधी ने जब बहुमत का दावा किया था तब उन्हें राजनीति की एक कड़वी सीख मिली थी. तब उनके मुख्य सलाहकार अर्जुन सिंह ने कहा था, 'प्रवासी पक्षी आ रहे हैं.' तब सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार का समर्थन करने से इनकार कर दिया था. यह सोनिया के लिए किसी झटके से कम नहीं था.

इसके पांच साल बाद 2004 में जब सोनिया ने नॉन-बीजेपी गठबंधन तैयार किया और जब उनके पास सरकार बनाने का पूरा मौका था तब उन्होंने अपना मास्टर कार्ड फेंकते हुए प्रधानमंत्री पद अस्वीकार कर दिया. उन्होंने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के तौर पर नामित किया.

कर्नाटक में जो स्थिति बनी है वह 2004 में यूपीए सरकार बनने के दौरान के घटनाक्रम की याद दिलाती है.


यह सब कांग्रेस के शिमला कॉन्क्लेव से शुरू हुआ था जिसमें पार्टी ने 90 के दशक वाले अपने 'एकला चलो' के सिद्धांत  को छोड़ने का फैसला किया. इसके बाद कांग्रेस ने सबसे बड़ी पार्टी होने का हवाला देते हुए क्षेत्रीय पार्टियों को अपने साथ लाने की कोशिशें शुरू कीं.

कर्नाटक में कांग्रेस लीडरशिप ने जेडी-एस को राज्य का शीर्ष पद ऑफर कर दिया. इससे जेडी-एस और बीजेपी के बीच गठबंधन की संभावना नहीं के बराबर है क्योंकि जेडीएस के लिए कांग्रेस से बेहतर ऑफर बीजेपी के पास नहीं है. बीजेपी 104 सीटों के साथ कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी है और वह एचडी कुमारस्वामी को ज्यादा से ज्यादा डिप्टी सीएम का पद ऑफर कर सकती थी.


अब यदि बीजेपी कुमारस्वामी को सबसे बड़ा पद ऑफर करती है तो बीएस येदियुरप्पा को कुर्बानी देनी होगी. जिसका सीधा असर लिंगायत वोटबैंक पर पड़ेगा. वहीं यदि बीजेपी कुमारस्वामी से सीएम पद छोड़ने को कहती है तो वह ओल्ड मैसूर क्षेत्र के वोक्कालिगा समुदाय को अपने खिलाफ कर लेगी.  2019 लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी इतना बड़ा रिस्क नहीं लेना चाहेगी.

कर्नाटक की स्थानीय जातिगत राजनीति से अलग हटकर देखें तो हम पाएंगे कि 2019 आम चुनाव से पहले कांग्रेस गैर-एनडीए पार्टियों को एक बड़ा संदेश देने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस यह जाहिर कर रही है कि वह क्षेत्रीय पार्टियों के साथ उनके हिसाब से काम करने को तैयार है.

दूसरी तरफ यदि जेडीएस बीजेपी के साथ गठबंधन करती है तो उसे सरकार में सेकंडरी भूमिका ही मिलेगी. जबकि कांग्रेस के साथ गठबंधन उसके लिए ज्यादा फायदेमंद होगा क्योंकि कम से कम 2019 तक कांग्रेस सरकार को स्थिर बनाए रखने की कोशिश करेगी.
हम कह सकते हैं कि कर्नाटक चुनाव में जनता ने भले ही जेडीएस को ब्रॉन्ज मेडल दिया हो पर उसके हाथ सोना लग  गया है.
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